आत्महत्या — यह शब्द सुनते ही मन व्याकुल हो उठता है। यह केवल एक शारीरिक अंत नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा में एक बड़ा अवरोध है। प्रेमानंद जी महाराज, जो आज के युग में लाखों लोगों को अध्यात्म का प्रकाश दे रहे हैं, आत्महत्या को सबसे बड़ा आध्यात्मिक अपराध बताते हैं। वे कहते हैं कि यह जीवन ईश्वर की कृपा से मिला है और इसका अंत करना केवल अपने लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है।
आत्महत्या का कारण और मानसिक स्थिति
Gurudev Premanand ji Maharaj समझाते हैं कि जब इंसान बहुत दुखी होता है, बार-बार मुसीबतें आती हैं और हर बार हार का सामना करता है, तब उसके मन में आत्महत्या का विचार आता है। मुश्किलों से भागने की यही सोच इसका असली कारण है। लेकिन महाराज जी कहते हैं कि यह जीवन भगवान का अनमोल तोहफा है, इसे खत्म करना ईश्वर की मर्जी के खिलाफ है। जो आत्महत्या करता है, वह अपने कर्मों से बच नहीं सकता, बल्कि अपने आने वाले दुखों को और बढ़ा लेता है।
आत्महत्या के बाद आत्मा की स्थिति
प्रेमानंद जी महाराज Gurudev Premanand ji Maharaj समझाते हैं कि आत्महत्या करने के बाद आत्मा को शांति नहीं मिलती। आत्मा को परमात्मा की शरण तभी मिलती है जब मनुष्य अपने जीवन के सभी कर्म पूरे कर लेता है। लेकिन आत्महत्या करने वाले की आत्मा अधूरी यात्रा के कारण भटकती रहती है। शास्त्रों में इसे ‘भूत योनि’ कहा गया है, जहाँ आत्मा अपने अधूरे कामों और बचे हुए कर्मों के बोझ से दुखी रहती है। न उसे शांति मिलती है और न ही मुक्ति। इसलिए जीवन के दुखों से हार मानना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य और भक्ति से उन्हें पार करना चाहिए।
आत्मा की पीड़ा
आत्महत्या करने वाला जब मृत्यु के बाद अपनी स्थिति को देखता है, तो उसे यह महसूस होता है कि उसने अपने जीवन के उद्देश्य को अधूरा छोड़ दिया। उसके कर्तव्य, रिश्ते और संकल्प अधूरे रह जाते हैं, जिससे आत्मा भीतर से जलती और बेचैन रहती है। प्रेमानंद जी कहते हैं, “आत्महत्या किसी समस्या का अंत नहीं है; यह आत्मा की पीड़ा को और बढ़ा देती है।”
आत्महत्या और कर्मफल
सनातन धर्म में कर्मों का बहुत महत्व है। महाराज जी के अनुसार, आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अपने कर्मफल से नहीं बच सकता। बल्कि वह अपने कर्मों के बंधन को और अधिक जटिल बना लेता है। आत्महत्या का परिणाम अगले जन्मों में भयंकर दुख, अपंगता, मानसिक रोग और कठिनाइयों के रूप में सामने आता है। यह जीवन एक अवसर है अपने कर्म सुधारने का, और आत्महत्या उस अवसर को खो देना है।
पुनर्जन्म में प्रभाव
महाराज जी Gurudev Premanand ji Maharaj समझाते हैं कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता है, उसे अगले जन्म में पहले से भी ज्यादा दुख भोगने पड़ते हैं। इस जीवन की अधूरी परेशानियां अगले जन्म में और बड़ी बनकर सामने आती हैं। इसलिए मुश्किलों से भागना समाधान नहीं है, बल्कि उनका धैर्य से सामना करना ही असली जीत है।। इस प्रकार आत्महत्या न केवल समस्याओं का अंत नहीं करती, बल्कि उन्हें और बढ़ा देती है।
निवेदन:
आत्महत्या से बचने के उपाय

Gurudev Premanand ji Maharaj का संदेश स्पष्ट है—आत्महत्या से बचने का एकमात्र मार्ग है आध्यात्मिक शरण लेना।
भक्ति और ध्यान
महाराज जी कहते हैं कि भक्ति और ध्यान आत्मा को शांति और साहस प्रदान करते हैं। भगवान का स्मरण करने से मन के भीतर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है और मानसिक तनाव स्वतः कम हो जाता है। प्रतिदिन प्रार्थना, जप और ध्यान करने से जीवन में नयी आशा और शक्ति का संचार होता है।
सत्संग और गुरु कृपा
सत्संग में भाग लेना आत्मा के लिए अमृत के समान है। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं, “सच्चे गुरु के मार्गदर्शन में व्यक्ति हर संकट का सामना कर सकता है।” गुरु की शरण में जाने से मन मजबूत होता है और आत्महत्या जैसे विचार मन से दूर हो जाते हैं।
परिवार और समाज का सहयोग
महाराज जी का उपदेश है कि जब मन में निराशा घर कर ले, तो व्यक्ति को अपनी पीड़ा को अपनों के साथ साझा करना चाहिए। समाज को भी ऐसे लोगों के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए और उन्हें सहयोग व सहारा देना चाहिए।
आत्महत्या के प्रति समाज की जिम्मेदारी
Gurudev Premanand ji Maharaj मानते हैं कि आत्महत्या केवल व्यक्ति की नहीं, बल्कि समाज की भी समस्या है। इसलिए समाज का कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित कदम उठाए:
- शिक्षा और जागरूकता: लोगों को यह ज्ञान देना कि आत्महत्या समाधान नहीं, बल्कि आत्मा के लिए संकट है।
- सकारात्मक वातावरण: परिवार और समाज में ऐसा माहौल बनाना कि हर व्यक्ति अपनी समस्या खुलकर बता सके।
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सत्संग में जाना, संतों के प्रवचन सुनना और धर्म की सही शिक्षा पाना, यह सब मनुष्य को जीवन का असली मकसद समझाते हैं। जब हम आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं, तो हमें अपने दुःखों से लड़ने की ताकत मिलती है और जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है।
निष्कर्ष: जीवन अमूल्य है, आत्महत्या नहीं समाधान
Gurudev Premanand ji Maharaj के अनुसार, आत्महत्या जीवन की चुनौतियों से पलायन है, समाधान नहीं। यह आत्मा के लिए और भी बड़े संकट और पीड़ा का कारण बनती है। जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, व्यक्ति को धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए। भगवान पर आस्था और अध्यात्मिक साधना के द्वारा हर समस्या का समाधान संभव है।
हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को प्रभु के चरणों में समर्पित करें और इसे सकारात्मक दिशा में ले जाएं। जब भी आत्महत्या का विचार मन में आए, तुरंत किसी अपने से बात करें, सत्संग में जाएं और गुरु की शरण लें। यह जीवन प्रभु की कृपा है और इसे सुंदरता से जीना ही सच्चा धर्म है।
Gurudev Premanand ji Maharaj कहते हैं,
FAQs: आत्महत्या करने वालों के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आत्महत्या का अर्थ है — व्यक्ति द्वारा स्वयं अपने जीवन का अंत करना। यह मानसिक, भावनात्मक या परिस्थितिजन्य कारणों से प्रेरित होकर किया गया आत्मघाती कृत्य है। आध्यात्मिक दृष्टि से आत्महत्या जीवन के उद्देश्य से पलायन है और धर्मग्रंथों में इसे पाप तथा आत्मा की उन्नति में बाधक बताया गया है।
आत्महत्या बहुत बड़ा पाप है। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, इससे आत्मा को शांति नहीं मिलती बल्कि अगले जन्मों में दुख और बढ़ जाते हैं। इसलिए कठिनाई में भी धैर्य और भक्ति का मार्ग ही सही है।
जब इंसान दुख, तनाव, असफलता और निराशा से हार जाता है, तब वह आत्महत्या का सोचता है। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि ऐसे समय में ईश्वर की शरण लेना ही समाधान है।
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, आत्महत्या करने के बाद आत्मा भूत योनि में भटकती है और उसे शांति व मुक्ति प्राप्त करने में कठिनाई होती है। आत्मा को अपने अधूरे कर्मों और बंधनों का कष्ट भोगना पड़ता है।
प्रेमानंद जी महाराज सलाह देते हैं कि ऐसे समय में भक्ति, ध्यान, सत्संग और गुरु की शरण लें। अपने परिवार और सच्चे मित्रों से बात करें और तुरंत मानसिक सहायता प्राप्त करें।
हां, लेकिन इसके लिए विशेष साधना, प्रायश्चित, और ईश्वर की शरण आवश्यक होती है। आत्मा को शांति दिलाने के लिए परिवारजन को भी दान, जप, यज्ञ और भक्ति करनी चाहिए।
🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏
- Virat Kohli का जवाब Premanand Maharaj Ji के ‘प्रसन्न हो’ सवाल पर(Ekantik Vartalaap)
- आत्महत्या करने वालों का आगे क्या होता है? — प्रेमानंद जी महाराज के दिव्य वचन
- क्रोध पर विजय: प्रेमानंद जी महाराज के सरल उपायों से पाएं मन की शांति
- भक्तों को कष्ट क्यों होता है? — प्रेमानंद जी महाराज का सरल संदेश
- भगवान के नाम का टैटू बनवाना God Name Tattoo– आस्था या अपमान? प्रेमानंद जी महाराज की चेतावनी