ब्रह्मचर्य बनाए रखने के लिए इन 8 बुरी आदतों से रहें दूर

ब्रह्मचर्य का पालन केवल सन्यासियों या तपस्वियों के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि हर इंसान के लिए यह जरूरी है – चाहे वह छात्र हो, गृहस्थ हो या साधक। ब्रह्मचर्य का सीधा संबंध हमारे शरीर, मन और आत्मा की शुद्धता से है। यह जीवन को दिशा देता है और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। लेकिन अफसोस की बात है कि आज की दुनिया में ब्रह्मचर्य का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। जो चीज़ कभी जीवन का आधार मानी जाती थी, आज वो उपेक्षा की जा रही है। पूज्य उड़िया बाबा जी कहते हैं कि “अष्ट मैथुन” यानी आठ प्रकार की आदतें ऐसी होती हैं जो हमारे ब्रह्मचर्य को नष्ट कर देती हैं।

1. अश्लील दृश्य या विचारों से मन को दूर रखें

जब हम किसी अश्लील सीन, फ़िल्म, तस्वीर या लेख को देखते या पढ़ते हैं, तब हमारे मन में काम का विचार आने लगता है। चाहे वह किसी जानवर का ही दृश्य क्यों न हो, उसका असर हमारे मन और शरीर पर पड़ता है। एक उदाहरण के तौर पर, सोभरि ऋषि भगवान के ध्यान में लीन थे, लेकिन एक दिन उन्होंने मछलियों का मैथुन देखा और उनका मन स्त्रियों की ओर आकर्षित हो गया। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने 50 राजकुमारियों से विवाह कर लिया।

इसलिए जरूरी है कि हम अपने मन को इस तरह के विचारों और दृश्यों से दूर रखें। जो कुछ भी काम-प्रेरित हो – उसे पढ़ना, देखना, सोचना, सब त्याग दें। मन का संयम ही ब्रह्मचर्य की पहली सीढ़ी है।

2. अश्लील बातों की संगति से बचें

जब कुछ लोग बैठकर स्त्रियों के अंगों या काम विषयों की बातें करते हैं, तो यह बातचीत सीधे हमारे मन को दूषित करती है। हो सकता है हम उस समय कुछ न कहें, लेकिन मन में विचार ज़रूर प्रवेश कर जाते हैं। यही विचार बाद में स्वप्न में या अन्य माध्यम से ब्रह्मचर्य भंग का कारण बनते हैं।

बजाय इसके, हमें भगवान की चर्चा करनी चाहिए – उनके रूप, गुण, लीला, और भक्ति की बातें। संगति का प्रभाव बहुत गहरा होता है। जैसे जल में रहकर मछली गीली होती है, वैसे ही संगत हमारे चरित्र को प्रभावित करती है।

3. एकांत में विपरीत लिंग के साथ व्यवहार से बचें

अगर कोई व्यक्ति विपरीत लिंग के साथ एकांत में हंसी-मजाक करता है, इशारे करता है या स्पर्श करता है, तो यह भी ब्रह्मचर्य के लिए घातक होता है। चाहे वह व्यवहार हल्का-फुल्का लगे, लेकिन उसके पीछे काम का बीज छिपा होता है। एक ब्रह्मचारी को हमेशा सजग रहना चाहिए कि वह किसी स्त्री या पुरुष के साथ अकेले न बैठे, न उनके साथ कोई भावनात्मक या शारीरिक संपर्क बनाए।

यह नियम केवल पुरुषों पर नहीं, स्त्रियों पर भी उतना ही लागू होता है। इंद्रियाँ बड़ी चालाक होती हैं, वे कब किसे फंसा लें – कोई नहीं जानता।

4. चोरी-छिपे किसी स्त्री को देखना भी पतन का कारण बनता है

अगर कोई व्यक्ति किसी स्त्री को चुपचाप, काम भावना से देखता है, तो यह भी ब्रह्मचर्य का उल्लंघन है। इस नजर को ही “चोर दृष्टि” कहा गया है। सामने वाला व्यक्ति न देख रहा हो, और हम चुपचाप उसे गलत दृष्टि से देखें, तो यह भी पतन का एक बड़ा कारण है। आँखें मन का रास्ता होती हैं, इसीलिए दृष्टि पर संयम ज़रूरी है।

5. स्त्रियों के साथ हाव-भाव और मुस्कान में भी छिपा होता है काम का बीज

कभी-कभी कोई व्यक्ति हल्की मुस्कान देता है, किसी पर आंखों से इशारा करता है, या मज़ाक करता है – ये सब बाहर से तो सामान्य लगते हैं, लेकिन ये मन में काम का बीज बो देते हैं। वह बीज बाद में बड़ा होकर कामना का रूप ले लेता है और ब्रह्मचर्य को भीतर से खा जाता है।

इसलिए हाव-भाव, मुस्कान, इशारे और मज़ाक में भी पवित्रता होनी चाहिए। कोई भी काम भावना से प्रेरित व्यवहार, भले ही छोटा लगे, वह नुकसानदेह ही होता है।

6. शरीर का श्रृंगार करना – एक गुप्त फिसलन

आजकल हम शरीर को सजाने-संवारने में बहुत समय लगाते हैं। बालों में जेल, चेहरे पर क्रीम, आकर्षक कपड़े – सबकुछ दिखावे के लिए किया जाता है। लेकिन यह सजावट धीरे-धीरे रजोगुण को बढ़ाती है और वहीं से काम का जन्म होता है। एक ब्रह्मचारी को अपना श्रृंगार भगवान के लिए करना चाहिए – जैसे चंदन लगाना, तुलसी माला पहनना, प्रभु की चरण रज लगाना।

जो श्रृंगार दूसरों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है, वह हमारे ब्रह्मचर्य को खा जाता है। इसलिए सजावट में भी सादगी और सेवा-भाव होना चाहिए।

7. भोग की बातें सुनना और उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करना

कई बार लोग भोग-विलास की बातें करते हैं – जैसे किसने क्या किया, कितना आनंद आया, वगैरह। जब हम ऐसी बातें सुनते हैं, तो हमारा मन भी उसी दिशा में भागने लगता है। धीरे-धीरे हम सोचते हैं – “ऐसा सुख मुझे भी चाहिए” और फिर हम मार्ग खोजने लगते हैं।

यह विचार धीरे-धीरे ब्रह्मचर्य को कमजोर कर देता है। इसलिए भोग की बातों से दूर रहें और भगवान, भक्ति और सत्संग की बातों में मन लगाएं।

8. हस्तमैथुन और संभोग – सबसे बड़ा विनाश (Masturbation)

अब आता है सबसे अंतिम और सबसे घातक चरण – जब कोई व्यक्ति खुद से या किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है। आज यह आदत बहुत सामान्य हो गई है, खासकर युवाओं में। टीवी, इंटरनेट, मोबाइल – हर तरफ अश्लीलता फैली है, जो लोगों को इस ओर खींचती है।

हस्तमैथुन (masturbation) एक बहुत ही नुकसानदेह आदत है। यह शरीर को अंदर से खोखला कर देती है, जैसे लकड़ी को दीमक खा जाती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि कई डॉक्टर इसे “सामान्य” कहते हैं, जबकि यह आत्मा और शरीर – दोनों को नुकसान पहुँचाता है।

कैसे बचें इन आदतों से?

  • सत्संग करें – अच्छी संगति में रहें। संतों की बातें सुनें और भगवान का स्मरण करें।
  • नजरों का संयम रखें – अश्लील चीज़ें न देखें और न सुनें।
  • स्वस्थ दिनचर्या अपनाएं – जल्दी उठें, योग-प्राणायाम करें, और शुद्ध आहार लें।
  • संकल्प लें – हर दिन प्रभु से प्रार्थना करें कि आपको संयम में बनाए रखें।
  • सेवा करें – समय को सेवा में लगाएं, ताकि फालतू विचार न आएं।

निष्कर्ष: ब्रह्मचर्य की रक्षा ही आत्म-रक्षा है।

ब्रह्मचर्य केवल शरीर का संयम नहीं, बल्कि मन, वाणी और दृष्टि का भी संयम है। यह आत्मशक्ति, आत्मविश्वास और प्रभु प्रेम की नींव है। अगर हमें सच्चे सुख, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति चाहिए, तो इन 8 आदतों से दूर रहना ही होगा।

हर युवा, हर साधक – चाहे किसी भी स्थिति में हो – अगर ब्रह्मचर्य को अपनाता है, तो वह अपने जीवन में महान बन सकता है। ब्रह्मचर्य केवल त्याग नहीं, बल्कि ऊर्जा का दिव्य रूप से उपयोग है।

तो चलिए, आज से ही प्रण करें कि इन आदतों से दूरी बनाएंगे और ब्रह्मचर्य के पावन मार्ग पर चलेंगे।

🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏

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