जीवन में कई बार ऐसी घटनाएँ होती हैं जो हमें अंदर से तोड़ देती हैं। सबसे बड़ा आघात तब लगता है जब जिससे हम सच्चा प्रेम करते हैं, उसकी शादी किसी और से हो जाती है। ऐसे समय में मन निराशा, अकेलेपन और उदासी से घिर जाता है। धीरे-धीरे यह स्थिति Depression में बदल जाती है। डिप्रेशन केवल एक मानसिक रोग नहीं है, बल्कि यह हमारे कर्म, इच्छाओं और आचरण का भी परिणाम है। यदि हम इसे सही दृष्टिकोण से समझें और ईश्वर की शरण लें, तो इससे बाहर निकलना संभव है।
डिप्रेशन (Depression) क्या है?
Depression एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति हर समय निराश, कमजोर और भयभीत रहता है। उसका मन बार-बार नकारात्मक बातें सोचता है और उसे लगता है कि जीवन का कोई उद्देश्य ही नहीं है। वह सही निर्णय लेने की क्षमता खो देता है।
असल में, डिप्रेशन (Depression) मन के अशांत होने और बुद्धि के असंतुलित होने का परिणाम है। जब हमारी इन्द्रियाँ बार-बार बाहरी सुखों की ओर भागती हैं और इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तब मन और अधिक परेशान हो जाता है। यही स्थिति डिप्रेशन को जन्म देती है।
डिप्रेशन के पीछे छुपा कारण
हमारे मन, इन्द्रियों और बुद्धि का गहरा संबंध है।
- बुद्धि भोगों का चुनाव करती है।
- मन नए-नए संकल्प करता है।
- चित्त उनका चिंतन करता है।
- अहंकार उन्हें स्वीकार करता है।
यदि बुद्धि शुद्ध नहीं है, तो मन इन्द्रियों के पीछे भागता है और हमें गलत कर्मों में फँसा देता है। यही गलत कर्म बार-बार हमें दुख और डिप्रेशन में डालते हैं।
पाप और अशांत जीवन
शास्त्रों में कहा गया है कि व्यभिचार, मांसाहार, मद्यपान और जुआ जैसे दुष्कर्म कभी भी मनुष्य को शांति नहीं लेने देते। ये कर्म मनुष्य को अंदर से खोखला बना देते हैं। पिछले जन्मों के पाप और वर्तमान के गलत आचरण मिलकर हमें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर करते हैं। इसका परिणाम होता है डिप्रेशन।
इससे बचने का सरल उपाय है – गलत आचरण से बचना और निरंतर भगवान का नाम-जप करना।
जब जीवनसाथी न मिले
अक्सर लोग सोचते हैं कि विवाह ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है। लेकिन शास्त्र बताते हैं कि यदि प्रारब्ध में जीवनसाथी लिखा ही नहीं है, तो निराश नहीं होना चाहिए। हमें भगवान का वरण करना चाहिए।
अगर विवाह हो भी जाए और जीवनसाथी बदल जाए, तब क्या होगा? यही कारण है कि केवल जीवनसाथी पर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। हमें अपने जीवन का आधार भजन और भगवान का आश्रय बनाना चाहिए।
गीता का मार्गदर्शन

भगवद्गीता हमें Depression से बाहर निकलने का स्पष्ट उपाय बताती है।
भगवद्गीता 12.8
“मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः॥”अर्थात – हे अर्जुन! अपना मन और बुद्धि मुझमें स्थिर कर दो, फिर तुम निश्चय ही मुझमें निवास करोगे।
भगवद्गीता 9.34
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः॥”अर्थात – मेरा मनन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो। ऐसा करने से तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर लोगे।
इन श्लोकों से स्पष्ट है कि डिप्रेशन से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय है – भगवान का स्मरण और भक्ति।
कर्म का सिद्धांत और डिप्रेशन
रामचरितमानस में तुलसीदास जी लिखते हैं:
“काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥”अर्थात – कोई किसी को सुख-दुख नहीं देता। हर प्राणी अपने ही कर्मों का फल भोगता है।
इसलिए, यदि हम दुख और डिप्रेशन में हैं, तो इसका कारण हमारे अपने ही अशुभ कर्म हैं। अच्छे कर्म बुरे कर्मों को मिटा नहीं सकते। केवल भगवान का नाम-जप ही दोनों को नष्ट कर सकता है और हमें जीवनमुक्त बना सकता है।
भगवान की शरण ही सच्चा सहारा

डिप्रेशन का असली कारण है भगवान से विमुख होना। जब मनुष्य प्रभु से दूर होता है, तो उसे चिंता, भय और अशांति घेर लेती है। परंतु जो व्यक्ति भगवान की शरण में जाता है, वह निर्भय, निश्चिंत और आनंदमय हो जाता है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं:
“सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥”अर्थात – जैसे ही जीव मेरे सम्मुख होता है, उसके करोड़ों जन्मों के पाप तुरंत नष्ट हो जाते हैं।
नाम-जप का महत्व
भक्ति और नाम-जप ही डिप्रेशन से मुक्ति का सबसे सरल मार्ग है। भगवान के नाम का स्मरण करते ही मन की अशांति मिट जाती है।
श्रीमद्भागवतम 12.13.23 में कहा गया है:
“नामसङ्कीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।
प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्॥”अर्थात – जिनके नाम-संकीर्तन से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और प्रणाम करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं, उन परम प्रभु हरि को मैं प्रणाम करता हूँ।
इसलिए, हमें दिन-रात “राधा-राधा” या अपने प्रिय भगवान का नाम लेना चाहिए। यही नाम हमें डिप्रेशन, चिंता और भय से बचाता है।
अच्छे आचरण और सकारात्मक जीवन
सिर्फ नाम-जप ही नहीं, बल्कि अच्छे आचरण भी ज़रूरी हैं।
- सात्त्विक आहार लें।
- सकारात्मक विचार रखें।
- दूसरों को सुख पहुँचाने का प्रयास करें।
- बुरी आदतों जैसे व्यभिचार, नशा और हिंसा से बचें।
ये सब मिलकर मन को पवित्र करेंगे और डिप्रेशन से बाहर निकलने में मदद करेंगे।
निष्कर्ष: Depression से बाहर कैसे आएं?
डिप्रेशन से बाहर निकलना तभी संभव है जब हम अपने गलत कर्मों को त्यागकर भगवान की शरण लें।
भगवद्गीता 18.66 में भगवान कहते हैं:
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”अर्थात – सब धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम शोक मत करो।
इसलिए, जीवन के दुख और डिप्रेशन से मुक्त होने का एक ही मार्ग है – भगवान का नाम-जप और उनकी शरण। यही मार्ग हमें परम शांति और आनंद प्रदान करता है।
FAQ’s
हाँ, Spiritual practices जैसे भगवान का नाम-जप (Chanting), Shastra पढ़ना और Satsang सुनना मन को बहुत शांत करते हैं। ये मनुष्य को अंदर से strong बनाते हैं और permanent solution देते हैं क्योंकि ये हमें directly God से जोड़ते हैं।
जब कोई “Radha-Radha” या “Hare Krishna” का जप करता है, तो mind automatically शांत होने लगता है। यह negative thoughts को reduce करता है और ऐसा feel होता है जैसे God हमेशा साथ हैं। इस divine connection से loneliness दूर होता है और मन को peace मिलता है।
अगर Depression severe है, तो Doctor या Mental health specialist की मदद ज़रूरी है। लेकिन जब Medical treatment के साथ-साथ भक्ति और Naam-Jap भी किया जाए, तो recovery fast और long-lasting होती है।
Ultimate solution है – God की शरण लेना। जैसा कि Shri Krishna ने Gita (18.66) में कहा है: “सब धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।” Only Divine Shelter ही permanent peace और freedom देता है।
🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏