मैं काफ़ी समय से Naam Jap कर रहा हूँ, लेकिन जीवन में परिवर्तन क्यों नहीं आ रहा?

अनेक साधक यह प्रश्न करते हैं – “मैं कई वर्षों से नाम जप कर रहा हूँ, लेकिन अभी तक मेरे जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन क्यों नहीं आया?” यह सवाल बिलकुल स्वाभाविक है। हम सोचते हैं कि जैसे ही नाम जप शुरू करेंगे, वैसे ही चमत्कार होने लगेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि नाम जप केवल होंठों से शब्द बोलने का कार्य नहीं है, यह मन, बुद्धि और आत्मा से जुड़ा हुआ एक गहरा spiritual practice है।

संतों का कहना है कि – नाम जपना कठिन है, नाम जप को बचाना कठिन है और नाम जप को पचाना कठिन है। यही तीन बातें साधना की नींव हैं।

भगवान का नाम जपना इतना कठिन क्यों है?

किसी भी साधक के लिए पहला कदम नाम जप (Naam jap) है। हम सोचते हैं कि यह आसान है – बस माला उठाई और जप शुरू कर दिया। लेकिन जब हम इसे लगातार करते हैं, तब समझ आता है कि मन कितना चंचल है।

  • आप चार घंटे लगातार नाम जपने की कोशिश कीजिए, तुरंत मन इधर-उधर भागने लगेगा।
  • कभी ध्यान मोबाइल की notification पर जाएगा, कभी मन खाने की सोचने लगेगा, कभी भविष्य की चिंता सताएगी।
  • धीरे-धीरे थकान महसूस होगी और लगेगा कि बस अब और नहीं।

यही कारण है कि संतों ने कहा है – “भगवान का नाम जपना कठिन है।”

जैसे gym में शुरुआत में शरीर exercise का अभ्यस्त नहीं होता, वैसे ही मन भी नाम जप का अभ्यास करते समय विरोध करता है। लेकिन नियमित अभ्यास से धीरे-धीरे मन स्थिर होने लगता है।

नाम जप को बचाना – अहंकार से सावधान

मान लीजिए कि कोई साधक प्रतिदिन 21 माला कर लेता है या रोज़ 2 घंटे जप करता है। धीरे-धीरे उसके अंदर यह विचार आने लगता है कि–

  • “मैं दूसरों से ज्यादा जप करता हूँ।”
  • “मैं श्रेष्ठ साधक हूँ।”
  • “दूसरे तो बस समय बर्बाद कर रहे हैं, मैं ही सच्चा भक्त हूँ।”

यहीं से समस्या शुरू होती है। क्योंकि नाम जप केवल मात्रा से नहीं, बल्कि विनम्रता से फलित होता है।

यदि अहंकार आ गया, तो जप नष्ट हो जाता है। संत कहते हैं कि नाम को बचाने का अर्थ है –

  • हर समय यह मानना कि यह सब मेरी शक्ति से नहीं, बल्कि गुरु कृपा और भगवान की दया से हो रहा है।
  • यह समझना कि मैं तो अयोग्य था, अगर मुझे नाम जपने का अवसर मिला है तो यह केवल करुणा का परिणाम है।

जब यह भाव रहेगा, तभी Naam jap सुरक्षित रहेगा।

नाम जप को पचाना – सहनशीलता की असली कसौटी

मान लीजिए आप लगातार Naam jap कर रहे हैं, और कोई व्यक्ति आपके बारे में अपमानजनक बातें कह दे। आपका मन तुरंत प्रतिक्रिया करना चाहेगा।

  • अगर आपने गाली का जवाब गाली से दिया, तो आपका जप व्यर्थ हो गया।
  • अगर आपने अपमान का बदला लेने की ठान ली, तो आपकी साधना नष्ट हो गई।
  • लेकिन अगर आपने धैर्य रखा और सोचा – “यह भी भगवान की परीक्षा है”, तो आपने अपने जप को पचाया।

यही है नाम जप का असली digestion. अगर साधना से विनम्रता और सहनशीलता नहीं आई, तो समझिए कि अभी हमने नाम जप को सही अर्थों में पचाया नहीं है।

संत एकनाथ जी की कथा – नाम जप का पाचन

संत एकनाथ जी गंगा स्नान करके बाहर आए। तभी एक दुष्ट व्यक्ति ने उन पर ऊपर से थूक दिया।

  • संत बिना कुछ बोले फिर से गंगा स्नान करने चले गए।
  • वह व्यक्ति सौ बार थूकता रहा, और एकनाथ जी सौ बार स्नान करते रहे।
  • आखिरकार वह व्यक्ति हार मानकर चरणों में गिर पड़ा और बोला – “आपने मुझे एक बार भी गुस्से से नहीं देखा।”

संत ने उत्तर दिया –
“भाई, तुमने तो मुझ पर बड़ी कृपा की है। मुझे सौ दिन लगते सौ बार गंगा स्नान करने में, पर तुम्हारी वजह से मैं एक ही दिन में सौ बार गंगा स्नान कर पाया।”

यही है Naam jap को पचाने की असली पहचान। संत क्रोध नहीं करते, बल्कि विपरीत परिस्थिति को अवसर में बदल देते हैं।

साधक की असली परीक्षा

जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तब जप करना आसान है। लेकिन जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं –

  • जब लोग अपमान करते हैं,
  • जब परिवार विरोध करता है,
  • जब मन बार-बार विचलित होता है –

तभी असली परीक्षा होती है।

भक्त सोचता है – “आज भगवान इस रूप में मुझे परीक्षा देने आए हैं।”
वह प्रार्थना करता है – “हे प्रभु, मुझे शक्ति दो कि मैं शांत रहूँ और अपनी साधना बचा सकूँ।”

यही सोच एक साधक को धीरे-धीरे real transformation की ओर ले जाती है।

Naam jap और सत्संग का गहरा संबंध

संत कहते हैं – “सत्संग ही साधना की असली पाठशाला है।”

  • सत्संग से हमें नाम जप की प्रेरणा मिलती है।
  • संतों की वाणी हमें अहंकार से बचाती है।
  • भक्तों की संगति हमें सिखाती है कि अपमान को कैसे सहन करना है।

सत्संग में बैठने से मन में नई ऊर्जा आती है और जप का स्वाद बढ़ जाता है। अगर कोई साधक नियमित रूप से सत्संग करता है, तो उसका नाम जप सुरक्षित भी रहता है और पचता भी है।

Naam jap – केवल होंठों का काम नहीं, हृदय का आह्वान

बहुत से लोग Naam jap को mechanical process समझ लेते हैं। बस माला फेर ली, मन कहीं और चला गया। यह नाम जप का वास्तविक स्वरूप नहीं है।

सच्चा जप तब होता है जब –

  • नाम जपते समय मन भगवान की ओर लगने लगे।
  • होंठों से उच्चारण और हृदय से भावना जुड़ जाए।
  • धीरे-धीरे जप के साथ आँसू, विनम्रता और गहरा लगाव पैदा हो।

यही जप साधक को प्रभु के निकट ले जाता है।

निष्कर्ष

नाम जप साधना का सबसे सरल और सबसे कठिन मार्ग है।

  • इसे करना कठिन है क्योंकि मन चंचल है।
  • इसे बचाना कठिन है क्योंकि अहंकार आ जाता है।
  • इसे पचाना कठिन है क्योंकि अपमान सहना मुश्किल है।

लेकिन अगर साधक धैर्यपूर्वक जप करता रहे, अहंकार से बचे और अपमान को सहन कर ले, तो निश्चित रूप से उसके जीवन में परिवर्तन होगा।

संतों की संगति, गुरु कृपा और निरंतर अभ्यास से नाम जप का फल धीरे-धीरे प्रकट होता है। यह साधक को बाहरी दुनिया से ऊपर उठाकर भगवान की गोद में पहुँचा देता है।

याद रखिए – नाम जप कभी व्यर्थ नहीं जाता, उसका प्रभाव निश्चित समय पर प्रकट होता है।

FAQ’s

Naam Jap क्या है?

 Naam Jap भगवान के पवित्र नाम का बार-बार स्मरण और उच्चारण करना है, जिससे मन और आत्मा शुद्ध होती है।

नाम जप को बचाने का अर्थ क्या है?

नाम जप को अहंकार और दोष-दर्शन से बचाना ही इसे सुरक्षित रखना है। विनम्रता से ही जप बचता है।

नाम जप को पचाना कैसे संभव है?

 अपमान और विपरीत परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक सह लेना ही नाम जप का पाचन है। यही साधना को स्थायी बनाता है।

सत्संग का नाम जप से क्या संबंध है?

सत्संग से साधक को प्रेरणा, विनम्रता और सहनशीलता मिलती है, जिससे नाम जप फलदायी बनता है।

🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏

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