पूज्य महाराज जी का कहना है, कि जैसे बीमारी में केवल दवा से ही काम नहीं चलता, परहेज भी जरूरी होता है। वैसे ही भगवान के नाम का जाप (नारायण नारायण) करते समय यह आवश्यक है कि हम अपनी इच्छाओं पर संयम रखें। जब मन संतुष्ट, शांत और द्वेष रहित होता है, तभी भगवान नाम का सच्चा लाभ मिलता है।
भगवान की स्थिति में संतुष्टि
भगवान हमें जिस भी परिस्थिति में रखते हैं, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए। “यदच्छालाभ संतुष्टो” – इसका अर्थ है जो मिल रहा है, उसी में प्रसन्न रहना। हमारी एकमात्र चाह भगवान के दर्शन होनी चाहिए, और कुछ नहीं।
समान भाव और निर्मल आचरण
जीवन में मान-अपमान, सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय—इन सभी में समान भाव रखना चाहिए। किसी से ईर्ष्या या द्वेष नहीं होना चाहिए। हम ऐसे आचरण करें कि किसी माता-बहन की तरफ गंदी द्रष्टि न हो, कोई व्यसन न हो और किसी का अहित न करें। भगवन नाम जपें, भगवान की कथा सुनें।
भगवान के लिए तड़प और रोना

जब हम भगवान के लिए सच्चे मन से रोते हैं ( हृदय की एक पीड़ामय स्थिति), तभी उनका साक्षात्कार संभव होता है। केवल दो-चार आँसू नहीं, बल्कि हृदय से निकली पीड़ा ही भगवान को बुला सकती है। जैसे प्यासे को केवल पानी चाहिए होता है, वैसे ही हमें केवल भगवान चाहिए। ऐसे भगवान के दर्शन की इच्छा वाले को ब्रह्मादिक के भोग सब विषम लागत ताए नारायण ब्रजचंद्र की लगन लगी है जाए ब्रम्हाद (यह तो मृत्यु लोक है) स्वर्ग लोक आदि के भोग में कोई रूचि नहीं मुझे केवल भगवान चाहिए। जब यह लगन लग जाती है केवल भगवान चाहिए तो फिर भगवान उसकी परीक्षा लेते है।
माया के खिलौनों की परीक्षा
भगवान पहले माया के खिलौनों से परीक्षा लेते हैं। अगर हम उन खिलौनों से संतुष्ट हो जाते हैं, तो भगवान दूर रहते हैं। लेकिन अगर हम रोते ही रहते हैं, तब भगवान स्वयं कहते हैं – “अब मुझे ही आना होगा।”
भगवान की प्राप्ति की लालसा

भगवान मिलना सरल है, पर मिलने की सच्ची चाह कठिन है। जो भगवान के लिए तड़पता है, वही उनकी प्राप्ति कर सकता है। संत समागम, नाम जप और भगवान की लीलाओं की कथा सुनने से यह भाव धीरे-धीरे विकसित होता है।
भगवान के सच्चे प्रेमी का हृदय
“जाहि न चाहिए कबहु कछु तुम सन सहज स्नेह।
बसहु निरंतर ता सुर सुरा निजगे।”
जिसे भगवान के सिवा कुछ और नहीं चाहिए उसके हृदय में भगवान निवास करते है।
पवित्र द्रष्टि और निष्कलंक जीवन
“जननी समझह पर नारी धन पराय विष ते विष भरी।
जिनहि राम तुम प्राण प्यारे तिनके मन मन शुभ सदन तुम्हारे।”
जो अन्य स्त्रियों को माँ के समान पवित्र द्रष्टि से देखते हैं, जो पराया धन विष के समान समझते हैं, और जिनके लिए भगवान प्राणों से भी प्यारे हैं – उनके हृदय में ही प्रभु वास करते हैं।
काम, क्रोध, लोभ पर विजय

“काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ नछोभ राग नहीं द्रोहा।
जिनके कपट दंभ नहीं माया, तिनके हृदय बसहु रघुराया।”
जो अपने मन से इन बुराइयों को जीत लेते हैं, जिनमें छल, कपट, माया नहीं होती—ऐसे निर्मल हृदय में ही भगवान निवास करते हैं।
भगवत्प्राप्ति का मार्ग

भगवान की प्राप्ति के लिए हमें सावधानीपूर्वक नाम जप करना चाहिए। साथ ही शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए ताकि जो नहीं करना चाहिए, वो हमसे कभी न हो। भगवान से केवल भगवान को ही माँगना चाहिए—कुछ और नहीं।
सच्ची तड़प ही दर्शन का कारण बनती है
“सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।
दुखिया दास कबीरा, जागे और रोवे।”
जो प्रभु के लिए रोता है, उसी को उनकी प्राप्ति होती है। संसार में बड़े खिलौने हैं, पर असली आनंद प्रभु की प्राप्ति में है। भगवान से मिलना सरल है पर मिलने की चाह कठिन है मिलने की असली लालसा कठिन है। वो संत समागम नाम जप भगवान लीला कथा श्रवण इससे आ जाती है।
🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏
FAQ’s
First, you must go to Vrindavan. Then, you must visit the Radha Keli Kunj Ashram and register your name there and obtain a token. You must reach the ashram by 4:00 AM in the morning.
Requirements: Bring a valid ID and wear modest clothing.
There is no fee to attend the Ekantik Vartalap sessions with Shri Premanand Ji Maharaj. The tokens are distributed free of charge at the ashram.
To meet Premanand Ji Maharaj, you have to visit Shri Hit Radha Keli Kunj Ashram in Vrindavan. For the private conversation, you have to reach the Ashram by 4:00 am and register your name for the session.