श्री प्रियाजू और श्री लालजू की नामावली: भक्ति, प्रेम और नित्य कृपा का आधार

सनातन धर्म और विशेषकर वैष्णव भक्ति परंपरा में, भगवान के नाम-जप को मोक्ष और भगवत्कृपा प्राप्ति का सरलतम साधन माना गया है। ब्रज और राधावल्लभ संप्रदाय में, श्री राधा रानी (जिन्हें ‘श्री प्रियाजू’ या ‘लाड़िली जू’ कहा जाता है) और उनके प्रियतम श्री कृष्ण (‘श्री लालजू’ या ‘मोहन जू’) के नाम का स्मरण जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज जी का यह दिव्य कथन कि “जो भी व्यक्ति श्री प्रियाजू की नामावली पढ़ता सुनता है, उस पर श्री राधा रानी जी की कृपा सदैव बनी रहती हैं,” नाम जप के इस शाश्वत महत्व की पुष्टि करता है। यह नामावली केवल शब्दों का संग्रह नहीं, अपितु श्री राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप, लीला माधुर्य और प्रेम सौंदर्य का साक्षात् दर्शन है।

श्री प्रियाजू (श्री राधा रानी) की नामावली: सौंदर्य, प्रेम और माधुर्य का सागर

श्री प्रियाजू की नामावली में उनके स्वरूप, गुण, और लीलाओं के अनगिनत आयाम समाहित हैं। यह नामावली श्री राधा के अष्टयाम सेवा, निकुंज लीला और परम प्रेम स्वरूप को उजागर करती है।

श्री राधे । नित्य किशोरी । वृन्दावन बिहारिनी । वनराज रानी। 

निकुंजेश्वरी । रूप रँगीली। छबीली। रसीली। रस नागरी । लाड़िली । 

प्यारी । सुकुँवारी। रसिकनी। मोहिनी । लाल-मुखजोहिनी । मोहन-मन-

मोहिनी । रति-विलास विनोदिनी। लाल-लाड़-लड़ावनी। रंग केलि बढ़ावनी। 

सुरत-चंदन-चर्चिती । कोटि दामिनी दमकनी। लाल पर लटकनी। 

नवल नासा – चटकनी। रस पुंजे वृंदावन प्रकाशिनी। रंग-विहार-विलासिनी। 

सखी-सुख निवासिनी। सौन्दर्य रासिनी । दुलहिनी। मृदु हासिनी।

 प्रीतम वैन निवासिनी । नित्यानन्द-बरसिनी। उरजनि पिय-परसिनी। 

अधर-सुधारस बरसिनी । प्राणनि रस – सरसनी। रंग-बिहारिनी। 

नेह-निहारिनी। पिय-हित-सिंगार-सिंगारिनी। प्यार सौं प्यारे को लै उर धारिनी। 

मोहन- मैंन विथा निरवारिनी। जान प्रवीन। उदार सँभारनी। अनुराग सिंधे। 

स्यामा। बामा । भामा । भाँवती । जुवतिन-जूथ-तिलका। वृंदावनचंद्र चंद्रिका । 

हास-परिहास-रसिका । नवरंगिनी अलकावलि-छवि-फंदिनी। 

मोहनी मुसिकन मंदिनी। सहज आनन्द कंदिनी। नेह- कुरंगिनी । 

मैंन विशाला। महामधुर रस-कंदिनी। 

चंचल चित्त आकर्षिनी मदन-मान- खंडिनी। प्रेम-रंग-रंगिनी। 

बंक कटाक्षिनी। सद विद्या-विचक्षिनी। कुँवर अंक विराजनी। 

प्यार-पट निवाजिनी। सुरत- समर-दल-साजिनी। मृगनैंनी । 

पिकबैंनी सलज्ज अंचला । सहज चंचला। कोक कलानि- कुशला । 

हाव-भाव चपला । चातुर्य चतुरा। माधुर्य मधुरा । बिनु भूषन भूषिता । 

अवधि सौन्दर्यता । प्राण-वल्लभा । रसिक-रमनी। कामिनी । 

भामिनी। हंस कल-गामिनी। घनश्याम अभिरामिनी । 

चंद-विपिनी। मदन दवनी। रसिक रवनी। केली कमनी। 

चित्तहरनी। ललन उर पर चरन धरनी। छवि कंज-बदनी। 

रसिक आनंदिनी। रूप मंजरी। सौभाग्य- रसभरी। सर्वांग सुन्दरी । 

गौरांगी। रतिरस रंगी। विचित्र कोक कला अंगी । छवि-चंद-वदनी । 

रसिक लाल बंदिनी। रसिक रस-रंगिनी । सखिनु सभा मंडिनी। 

आनंद कंदिनी । चतुर अरु भोरी । 

सकल सुख – रासि सदने।

प्रेम सिंधु के रतन ये, अद्भुत कुंवरि के नाम ।

 जाकी रसना रटै ‘ध्रुव’ सो पावै विश्राम ॥ 

ललित नाम नामावली, जाके उर झलकंत।

ताके हिय में बसत रहैं, स्यामा स्यामल कंत ॥

ललित रंगीली गाइये। तातें प्रेम रंग रस पाइये ॥

राधा गोरी मोहिनी, नवल किशोरी भाँम । 

नित्य विहारिनी लाड़िली, अलबेली वर वाम ॥

स्यामा प्यारी भांवती, नागरि परम उदार । 

वृंदाविपिन विनोदिनी कुंजनि-मनि सुकुंवारि ॥ 

मृगनैंनी गजगामिनी, पिकबैंनी नव बाल । 

अति सुंदर मृदु हासिनी, चंचल नैंन विसाल ॥ 

कुंज – कामिनी भामिनी, छबि दामिनी अनूप । 

पिय-हिय-मोद – प्रकासनी, चंद वदनि रस रूप ॥

रसिक रंगीली रंगभरी रही लाल उर-पूरि । 

पियहि लड़ावनि सुख लड़ी, प्रीतम जीवन मूरि ॥ 

मनहरनी सुठि सोहनी नवल छबीली भाँति । 

वृंदावन जगमगि रह्यौ अंगनि की छवि काँति ॥ 

कुंज बिलासिनि दुलहिनी, आनंद रूप निधान । 

सखियनि-मोद बढ़ावनी, पिय प्राननि के प्रान ॥ 

‘हित ध्रुव’ यह नामावली, जो करि है उर-माल ।

ताके हियै दिनहिं बसैं, नेही मोहन लाल ॥

श्री लालजू की नामावली

नामावली का द्वितीय भाग श्री लालजू (श्री कृष्ण जी) की स्तुति करता है, जिनके बिना श्री प्रियाजू का स्वरूप पूर्ण नहीं हो सकता। राधा-कृष्ण का प्रेम ही ब्रज भक्ति का सार है।

लाल रँगीलौ गाइये । तातें प्रीति रँगीली पाइये ॥ 

(श्री) राधावल्लभ लाड़िलौ, दूलह नित्य-किशोर,

(श्री) राधावल्लभ लाड़िलौ, दूलह नित्य-किशोर- 2 । 

कुंजविहारी भाँवतौ, मुख-प्यारी चंद-चकोर ॥ 

रसरंगी राधा-धनी, राधाधव सुकुँवार । 

कुंज रवन सोभा भवन वर सुन्दर सुघर उदार ॥ 

रसिक रँगीलौ रँगमग्यौ श्री वृंदावन – चंद | 

विपिनविलासी छवि-चहा, पिय-राधा आनंद – कंद ॥ 

रसिक-मौलि आनंदमणि मोहन कृष्ण कृपाल । 

सहज सलौनी साँवरौ, अंबुज नयन – विशाल ॥ 

‘हित ध्रुव (धुरुव)’ यह नामावली, मन-गुन सौं लै पोइ । 

ताही की रसना रटै, कुँवरि कृपा जब होइ,

ताही की रसना रटै, कुँवरि कृपा जब होइ ॥

नामावली पाठ का फल और संप्रदाय का सार

इस नामावली का पाठ और श्रवण साधक को केवल नाम स्मरण तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे युगल सरकार की नित्य लीलाओं में प्रवेश कराता है।

उपसंहार: नित्य आनंद की प्राप्ति

यह नामावली एक भक्तिमय काव्य है, जो श्री राधा-कृष्ण के युगल प्रेम, सौंदर्य और माधुर्य को शब्द रूप में प्रस्तुत करती है। यह भक्त को ब्रज के नित्य विहार, निकुंज की रसीली लीलाओं और प्रेम के परम उत्कर्ष तक ले जाती है। पूज्य महाराज जी के संदेश को धारण करते हुए, इस नामावली का नित्य पाठ हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर, श्री राधा रानी की सहज, नित्य और अहैतुकी कृपा का अधिकारी बनाता है। जिससे जीवन में आनंद और प्रेम का नवरंग सदैव भरा रहता है।

🙏 राधा वल्लभ श्री हरिवंश 🙏

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