पूज्ये श्री प्रेमानन्द महाराज जी का कहना है जो भी व्यक्ति श्री प्रियाजू की नामावली पढ़ता सुनता है उस पर श्री राधा रानी जी की कृपा सदैव बनी रहती हैं।
श्री राधे । नित्य किशोरी । वृन्दावन बिहारिनी । वनराज रानी।
निकुंजेश्वरी । रूप रँगीली। छबीली। रसीली। रस नागरी । लाड़िली ।
प्यारी । सुकुँवारी। रसिकनी। मोहिनी । लाल-मुखजोहिनी । मोहन-मन-
मोहिनी । रति-विलास विनोदिनी। लाल-लाड़-लड़ावनी। रंग केलि बढ़ावनी।
सुरत-चंदन-चर्चिती । कोटि दामिनी दमकनी। लाल पर लटकनी।
नवल नासा – चटकनी। रस पुंजे वृंदावन प्रकाशिनी। रंग-विहार-विलासिनी।
सखी-सुख निवासिनी। सौन्दर्य रासिनी । दुलहिनी। मृदु हासिनी।
प्रीतम वैन निवासिनी । नित्यानन्द-बरसिनी। उरजनि पिय-परसिनी।
अधर-सुधारस बरसिनी । प्राणनि रस – सरसनी। रंग-बिहारिनी।
नेह-निहारिनी। पिय-हित-सिंगार-सिंगारिनी। प्यार सौं प्यारे को लै उर धारिनी।
मोहन- मैंन विथा निरवारिनी। जान प्रवीन। उदार सँभारनी। अनुराग सिंधे।
स्यामा। बामा । भामा । भाँवती । जुवतिन-जूथ-तिलका। वृंदावनचंद्र चंद्रिका ।
हास-परिहास-रसिका । नवरंगिनी अलकावलि-छवि-फंदिनी।
मोहनी मुसिकन मंदिनी। सहज आनन्द कंदिनी। नेह- कुरंगिनी ।
मैंन विशाला। महामधुर रस-कंदिनी।
चंचल चित्त आकर्षिनी मदन-मान- खंडिनी। प्रेम-रंग-रंगिनी।
बंक कटाक्षिनी। सद विद्या-विचक्षिनी। कुँवर अंक विराजनी।
प्यार-पट निवाजिनी। सुरत- समर-दल-साजिनी। मृगनैंनी ।
पिकबैंनी सलज्ज अंचला । सहज चंचला। कोक कलानि- कुशला ।
हाव-भाव चपला । चातुर्य चतुरा। माधुर्य मधुरा । बिनु भूषन भूषिता ।
अवधि सौन्दर्यता । प्राण-वल्लभा । रसिक-रमनी। कामिनी ।
भामिनी। हंस कल-गामिनी। घनश्याम अभिरामिनी ।
चंद-विपिनी। मदन दवनी। रसिक रवनी। केली कमनी।
चित्तहरनी। ललन उर पर चरन धरनी। छवि कंज-बदनी।
रसिक आनंदिनी। रूप मंजरी। सौभाग्य- रसभरी। सर्वांग सुन्दरी ।
गौरांगी। रतिरस रंगी। विचित्र कोक कला अंगी । छवि-चंद-वदनी ।
रसिक लाल बंदिनी। रसिक रस-रंगिनी । सखिनु सभा मंडिनी।
आनंद कंदिनी । चतुर अरु भोरी ।
सकल सुख – रासि सदने।
प्रेम सिंधु के रतन ये, अद्भुत कुंवरि के नाम ।
जाकी रसना रटै ‘ध्रुव’ सो पावै विश्राम ॥
ललित नाम नामावली, जाके उर झलकंत।
ताके हिय में बसत रहैं, स्यामा स्यामल कंत ॥
ललित रंगीली गाइये। तातें प्रेम रंग रस पाइये ॥
राधा गोरी मोहिनी, नवल किशोरी भाँम ।
नित्य विहारिनी लाड़िली, अलबेली वर वाम ॥
स्यामा प्यारी भांवती, नागरि परम उदार ।
वृंदाविपिन विनोदिनी कुंजनि-मनि सुकुंवारि ॥
मृगनैंनी गजगामिनी, पिकबैंनी नव बाल ।
अति सुंदर मृदु हासिनी, चंचल नैंन विसाल ॥
कुंज – कामिनी भामिनी, छबि दामिनी अनूप ।
पिय-हिय-मोद – प्रकासनी, चंद वदनि रस रूप ॥
रसिक रंगीली रंगभरी रही लाल उर-पूरि ।
पियहि लड़ावनि सुख लड़ी, प्रीतम जीवन मूरि ॥
मनहरनी सुठि सोहनी नवल छबीली भाँति ।
वृंदावन जगमगि रह्यौ अंगनि की छवि काँति ॥
कुंज बिलासिनि दुलहिनी, आनंद रूप निधान ।
सखियनि-मोद बढ़ावनी, पिय प्राननि के प्रान ॥
‘हित ध्रुव’ यह नामावली, जो करि है उर-माल ।
ताके हियै दिनहिं बसैं, नेही मोहन लाल ॥